The Author Swati फॉलो Current Read हर पल रंग बदलती है फिल्मी दुनिया - भाग 1 By Swati हिंदी जीवनी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books फ़ाइनल डिसीज़न - भाग 1 भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव आज वह फिर नस्लवादी कॉमेंट की बर्छिय... उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 14 भाग 14 " इस औरत के कारण हमारी खानदानी सीट हमारे हाथों से निक... The Mystery of the Blue Eye's - 3 रौशनी कम होने पर सब को आँख खोलने की कोशिश करते है ओर जो देखत... श्रीमद्भागवतगीता मेरी समझ में महत्वपूर्ण श्लोक (भाग 1) श्रीमद्भागवतगीता के कुछ महत्वपूर्ण श्लोक (भाग 1) अध्याय 2 श्... इश्क तो होना ही था - 4 शर्मा जी : नही बेटा .... मैं नहीं चाहता हूं कोई मजबूरी में ख... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Swati द्वारा हिंदी जीवनी कुल प्रकरण : 2 शेयर करे हर पल रंग बदलती है फिल्मी दुनिया - भाग 1 (2) 1.4k 3.8k फिल्मी दुनिया की बेरुखी और हद दर्जे की खुदगर्जी को भी काफी गहराई से महसूस किया है मैने।चढ़ते सूरज को नमस्कार करना ही शहर की फितरत में हैं।गिरते हुए को धक्का मार कर जमीन पर लेटा देने में यहां सबको खुशी मिलती है ।फिल्मी दुनिया के कुछ दिग्गजों ने क्या खूब नाम दिया हैं बंबई शहर को । कोई कहता इसे ये माया नगरी है तो कोई कहता इसे की ये स्वपन की नगरी है ।सच भी थी है कि इस महानगर की पहचान व्यापारिक शहर की अपेक्षा फिल्मी नगरी के रूप में कही अधिक ज्यादा जाना जाता हैं । आज भी लाखो युवाओं के सपनो यह लहर जब तक उबाला मारता है ।लेकिन यहां बसी ग्लैमर ही इस शहर का पूरा सच भी है । रंगीनियों के साथ एक और चेहरा है जिसे संघर्ष ,भूख ,चापलूसी की और गुमनामी की स्याह लकीरे है ।लेकिन एक अजीब सा समोहन है इस शहर में जिससे वह हमेशा छलता रहा हैं । उन तमाम लोगों को जो झिलमिलाते सपनो की दुनिया लेकर यहां आते है ।गुजरे हुए वक्त की धुंधला रही यादों में ऐसे तमाम चेहरे सामने आते है जिन्हे इस माया नगरी ने फुटपाथ से उठा कर बुलंदियों पे बिठाया है । दूसरी तरफ ऐसे बदकिस्मत चेहरे भी कम नहीं जिन्हे यहां बेकफन दफन होने को मजबूर होना पड़ा । कुछ के लिए यह शहर ताउम्र संघर्ष का खेल बनकर रह गया । लेकिन यहीं वह चेहरे है जिनकी आंखों में झांकने की कोशिश करें तो सपनो की इस महानगरी का सच बहुत साफ दिखाई देने लगता है । 45 साल की एक ऐसी ही जवान शक्सियत का नाम है शक्ति । फिल्मी दुनिया के खूबसूरत व घटिया दोनो चेहरे को बहुत करीब से देखा है और जिया है इन्होंने ।वह बताती है की की मेरे भी जीवन में हीरोइन बन का रुचि उस दिन से जागी जिस दिन मैने फिल्मे देखना शुरू किया ।मैं हीरोइन बनने के लिए घर से भाग आई थी ,जवान और नादान उम्र के ढेर सारी यादों को समेटने की कोशिश में कुछ पल के लिए खामोश हो गई ,और उस दौर की लालस की यादें जीवंत हो उठी ।घर से भाग कर एक अंजानी जगह पे पेट पालने के लिय एक दुकान पे 100 रुपया रोज की नौकरी करती थी ।महीने के चार रविवार और त्योहारों की छुट्टी भारी पड़ती थी क्योंकि उन छुट्टियों के पैसे कट जाते थे । गुस्सा आता था की ये रविवार क्यों आ जाता है हर 6 दिन बाद ।और हर महीने त्यौहार क्यों आ जाते हैं। एक तो रहने के लिए अच्छा घर नहीं था सिर पे और महीने की पगार भी इतनी कम थी ।ऊपर से त्योहारों और रविवार की छुट्टी की अलग पैसे कट जाते है ,चूल्हे पर भी अपना खाना खुद ही बनाना पड़ता हैं।मुझे अफसोस हुआ करता था की मैं क्यों घर से भाग आई हीरोइन बनने के लिए इससे अच्छा जीवन तो हमारा गांव में ही था , कम से कम दो वक्त की रोटी तो सुकून से खाने को मिल जाता था ।आगे की कहानी भाग 2 में।swati › अगला प्रकरण हर पल रंग बदलती है फिल्मी दुनिया - भाग 2 Download Our App